🔷 प्रस्तावना – आलोचना का महत्व हिंदी साहित्य में आलोचना केवल कमियाँ निकालने की प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह रचना को समझने, परखने और उसके गुण-दोषों को उजागर करने की एक गहराईपूर्ण विधा है। कहानी एक महत्वपूर्ण साहित्यिक विधा है और इसकी आलोचना भी समय के साथ बदलती रही है। हिंदी कहानी की आलोचना में परंपरागत और आधुनिक दोनों दृष्टिकोणों का योगदान रहा है। ये दृष्टिकोण कहानी को अलग-अलग स्तरों पर समझने में सहायक होते हैं। 🔷 परंपरागत आलोचना की भूमिका हिंदी कहानी की प्रारंभिक आलोचना परंपरागत साहित्यिक मापदंडों पर आधारित थी। यह आलोचना शैली मुख्यतः नैतिकता, आदर्शवाद और सामाजिक मर्यादा के मानकों पर केंद्रित थी। प्रेमचंद जैसे लेखकों की कहानियों को आलोचक इस दृष्टि से देखते थे कि वे समाज के प्रति कितने उत्तरदायी हैं और उनका उद्देश्य क्या है। परंपरागत आलोचना के केंद्र में ‘क्या कहा गया है’ यह महत्वपूर्ण होता था, ‘कैसे कहा गया है’ यह कम। 🔷 नैतिकता और उद्देश्यपूर्णता पर जोर परंपरागत आलोचना यह मानती थी कि साहित्य और विशेषतः कहानी का उद्देश्य समाज को सुधारना है। इसीलिए आलोचक कहानी में नैतिक शिक...
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