Skip to main content

Posts

Showing posts from June 27, 2025

प्रश्न: रस में कहानी

  प्रश्न: रस में कहानी 🔷 परिचय – रस का अर्थ और कहानी में भूमिका भारतीय काव्यशास्त्र में रस को साहित्य की आत्मा माना गया है। "रस" का शाब्दिक अर्थ होता है – आनंद, भाव या स्वाद। जब कोई रचना पाठक या श्रोता के हृदय को छू ले, उसमें भावनात्मक कंपन उत्पन्न कर दे और मन को सच्चा आनंद दे, तो वह रस कहलाता है। रस न केवल कविता में, बल्कि गद्य साहित्य की विधाओं जैसे कहानी में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जब कोई कहानी पाठक के मन में करुणा, हास्य, वीरता या श्रृंगार जैसी भावनाएँ जगाती है, तब वह 'रस में कहानी' कहलाती है। 🔷 कहानी और रस – एक गहरा संबंध कहानी केवल घटनाओं का विवरण नहीं होती, बल्कि यह भावों, संवेदनाओं और अनुभवों का संप्रेषण होती है। पाठक जब कहानी पढ़ता है, तो वह केवल उसके पात्रों या घटनाओं को नहीं देखता, बल्कि उनके साथ भावनात्मक रूप से जुड़ता है। यही जुड़ाव कहानी में रस की उत्पत्ति करता है। यदि कहानी में रस नहीं होगा, तो वह पाठक को प्रभावित नहीं कर पाएगी। इसलिए यह कहा जाता है कि "रस ही साहित्य की आत्मा है", और एक सफल कहानी वही होती है जो पाठक के मन में...

प्रश्न: धीरेन्द्र वर्मा की मौलिक समीक्षात्मक कहानी

  प्रश्न: धीरेन्द्र वर्मा की मौलिक समीक्षात्मक कहानी? 🔷 परिचय – हिंदी आलोचना और धीरेन्द्र वर्मा का योगदान हिंदी साहित्य में कहानी के विकास और आलोचना की प्रक्रिया में कई विद्वानों ने अहम भूमिका निभाई है। बीसवीं शताब्दी के पहले चरण में जब हिंदी कहानी एक नई विधा के रूप में आकार ले रही थी, तब इसके सिद्धांत और स्वरूप को लेकर गहरे विचार नहीं हुए थे। उस समय धीरेन्द्र वर्मा जैसे विद्वानों ने कहानी के मूल्यांकन, समीक्षा और उसकी मौलिकता को रेखांकित किया। धीरेन्द्र वर्मा हिंदी साहित्य के उन अग्रणी आलोचकों में हैं जिन्होंने कहानी को केवल भावात्मक लेखन न मानकर उसमें चिंतन, तर्क और कला की आवश्यकता को भी समझा और रचनात्मक आलोचना को जन्म दिया। 🔷 धीरेन्द्र वर्मा का परिचय धीरेन्द्र वर्मा (1897–1973) हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार, आलोचक, भाषाविज्ञ और इतिहासकार थे। वे भाषा, साहित्य और संस्कृति के क्षेत्रों में बहुमूल्य कार्यों के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने न केवल आलोचना लिखी, बल्कि साहित्यिक विधाओं के विकास में मार्गदर्शन भी किया। उनका आलोचना दृष्टिकोण वस्तुपरक, ऐतिहासिक और विश्लेषणात्मक था। हिंद...

Ashoka and the Buddhist Councils | ssc gk Part 30

  📘 Part-30: Ashoka and the Buddhist Councils (सम्राट अशोक और बौद्ध संगीति – प्रतियोगी परीक्षा विशेष) ✍️ English Explanation (For SSC/UPSC/NTPC Exams) The Third Buddhist Council was organized by Emperor Ashoka in 250 BCE at Pataliputra (modern-day Patna). 🔹 Key Points on Ashoka: The council was chaired by Moggaliputta Tissa . It was during this council that the third part of the Tripitaka was composed in the Pali language . Ashoka convened this council to purify Buddhism from corruption and heresy. The Kalinga War deeply impacted Ashoka, where nearly 150,000 were wounded and over 100,000 were killed . After the war, Ashoka embraced Buddhism , choosing Dhamma-vijaya (conquest by dharma) over Dig-vijaya (military conquest) . In Minor Rock Edict I , Ashoka referred to himself as Upasaka , meaning a lay follower of Buddhism . 📜 Summary of All Four Buddhist Councils: Council Year Venue Chairman Patron 1st 483 BCE Rajgir Mahakassapa Ajatashatru 2nd 383 BCE...