प्रश्न: रस में कहानी
🔷 परिचय – रस का अर्थ और कहानी में भूमिका
भारतीय काव्यशास्त्र में रस को साहित्य की आत्मा माना गया है। "रस" का शाब्दिक अर्थ होता है – आनंद, भाव या स्वाद। जब कोई रचना पाठक या श्रोता के हृदय को छू ले, उसमें भावनात्मक कंपन उत्पन्न कर दे और मन को सच्चा आनंद दे, तो वह रस कहलाता है। रस न केवल कविता में, बल्कि गद्य साहित्य की विधाओं जैसे कहानी में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जब कोई कहानी पाठक के मन में करुणा, हास्य, वीरता या श्रृंगार जैसी भावनाएँ जगाती है, तब वह 'रस में कहानी' कहलाती है।
🔷 कहानी और रस – एक गहरा संबंध
कहानी केवल घटनाओं का विवरण नहीं होती, बल्कि यह भावों, संवेदनाओं और अनुभवों का संप्रेषण होती है। पाठक जब कहानी पढ़ता है, तो वह केवल उसके पात्रों या घटनाओं को नहीं देखता, बल्कि उनके साथ भावनात्मक रूप से जुड़ता है। यही जुड़ाव कहानी में रस की उत्पत्ति करता है। यदि कहानी में रस नहीं होगा, तो वह पाठक को प्रभावित नहीं कर पाएगी। इसलिए यह कहा जाता है कि "रस ही साहित्य की आत्मा है", और एक सफल कहानी वही होती है जो पाठक के मन में रस उत्पन्न करे।
🔷 आचार्य भरतमुनि और रस का सिद्धांत
रस की अवधारणा का सबसे प्रसिद्ध उल्लेख आचार्य भरतमुनि के 'नाट्यशास्त्र' में मिलता है। उन्होंने कहा –
"विभाव, अनुभाव, संचारी भावों से रस की उत्पत्ति होती है।"
यानी जब कोई कहानी अपने पात्रों, उनकी भावनाओं, क्रियाओं और वातावरण के माध्यम से पाठक में विशेष प्रकार की भावना उत्पन्न करती है, तो वह रस कहलाता है। यह रस नाटक, कविता, उपन्यास के साथ-साथ कहानी में भी उतना ही महत्त्वपूर्ण होता है।
🔷 कहानी में रस की उपस्थिति क्यों जरूरी है?
कहानी में रस का होना इसलिए जरूरी है क्योंकि रस ही वह तत्व है जो कहानी को केवल एक सूचना या विवरण से ऊपर उठाकर एक अनुभव बना देता है। रस कहानी को रोचक, जीवंत और प्रभावशाली बनाता है। पाठक कहानी से भावनात्मक रूप से तभी जुड़ता है जब वह उसमें रस का अनुभव करता है। एक करुण रस से युक्त कहानी पाठक को दुखी कर सकती है, वहीं हास्य रस से युक्त कहानी उसे हँसा सकती है। यह भावनात्मक प्रभाव ही कहानी की सफलता का मापदंड बनता है।
🔷 कहानी में रस की पहचान
कहानी में रस की पहचान उसके कथानक, पात्रों, संवादों और घटनाओं के माध्यम से होती है। यदि कहानी में कोई दुखद घटना हो और लेखक उसे इस प्रकार प्रस्तुत करे कि पाठक के मन में करुणा उत्पन्न हो जाए, तो वहाँ करुण रस होता है। यदि दो पात्रों के बीच प्रेम का गहरा संबंध हो और वह भावुकता से भर दे, तो वहाँ श्रृंगार रस होता है। इसी प्रकार हास्य, रौद्र, वीर, भयानक आदि रसों की उपस्थिति कहानी के भाव-संप्रेषण की ताकत को दर्शाती है।
🔷 प्रमुख रस और उनकी कहानियों में भूमिका
अब हम यह समझें कि किस-किस रस का कहानी में किस प्रकार प्रयोग होता है और उदाहरण स्वरूप कौन-सी कहानियाँ उस रस को व्यक्त करती हैं:
1. करुण रस
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यह उस समय उत्पन्न होता है जब कहानी में पीड़ा, दुख, अपमान, वियोग आदि का वर्णन होता है।
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उदाहरण: प्रेमचंद की ‘सद्गति’, ‘कफन’ में करुण रस प्रमुखता से दिखाई देता है।
2. श्रृंगार रस
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प्रेम, आकर्षण, सौंदर्य और कोमल भावनाओं से युक्त कहानियों में यह रस होता है।
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उदाहरण: जयशंकर प्रसाद की ‘आकाशदीप’ में श्रृंगार और भावुकता दोनों का मेल है।
3. वीर रस
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साहस, आत्मबल और संघर्ष की कहानियों में यह रस प्रमुख होता है।
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उदाहरण: विभूतिभूषण बंद्योपाध्याय की कहानियों में ग्रामीण पात्रों का संघर्ष वीर रस उत्पन्न करता है।
4. हास्य रस
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जब कहानी किसी घटना या पात्र के माध्यम से हँसी, व्यंग्य या मजाक पैदा करती है।
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उदाहरण: श्रीलाल शुक्ल की ‘राग दरबारी’ और हरिशंकर परसाई की व्यंग्यात्मक कहानियाँ।
5. रौद्र रस
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जब कहानी में क्रोध, प्रतिशोध, आक्रोश आदि की भावना हो।
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उदाहरण: दलित साहित्य की कई कहानियों में उत्पीड़न के विरुद्ध रौद्र रस की अभिव्यक्ति होती है।
🔷 समकालीन कहानियाँ और रस
समकालीन कहानियों में भी रस की प्रमुखता देखी जा सकती है, लेकिन उसका स्वरूप बदल गया है। आज की कहानियाँ यथार्थ पर आधारित होती हैं, और उनमें करुण, रौद्र और शांति रस की प्रधानता रहती है। जैसे – मन्नू भंडारी की ‘यही सच है’ में स्त्री की आत्मस्वीकृति के साथ शांति रस का संचार होता है। उसी तरह भीष्म साहनी की ‘अमृतसर आ गया है’ में विभाजन की पीड़ा करुण रस को जन्म देती है।
🔷 कहानीकार और रस-सर्जना की कला
एक सफल कहानीकार वही होता है जो केवल कथानक ही न रचे, बल्कि अपने लेखन से पाठक के भीतर भावनाओं की तरंगें भी उत्पन्न करे। इसके लिए उसे पात्रों का मनोविज्ञान, संवाद की गहराई, वातावरण का निर्माण और भाषा की शक्ति का अच्छा ज्ञान होना चाहिए। जब कहानीकार इन सबका संतुलित प्रयोग करता है, तब वह रसपूर्ण कहानी की रचना कर पाता है।
🔷 भाषा और शैली का योगदान
कहानी में रस उत्पन्न करने में भाषा की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। सरल, प्रभावशाली, भावनात्मक और बिंबात्मक भाषा पाठक को कहानी के साथ जोड़ती है। शैली में लय, गति और प्रभाव हो तो पाठक की संवेदना और अधिक गहराई से प्रभावित होती है। कहानी की भाषा अगर कृत्रिम या भारी होती है, तो रस का संचार कठिन हो जाता है।
🔷 रस और पाठक का भावानुभव
रस का संबंध केवल लेखक से नहीं, बल्कि पाठक की संवेदनशीलता से भी होता है। हर पाठक कहानी को अपनी अनुभूतियों के अनुसार पढ़ता है। कोई एक ही कहानी में करुण रस अनुभव करता है तो कोई उसमें वीर रस देखता है। इसलिए रस की उपलब्धि पाठक की भावना, शिक्षा, उम्र और अनुभव पर भी निर्भर करती है।
🔷 निष्कर्ष – रस के बिना कहानी अधूरी है
निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि कहानी में रस की उपस्थिति उसे केवल पढ़ने लायक नहीं, बल्कि अनुभव करने योग्य बना देती है। रस ही वह तत्व है जो पाठक को कहानी से जोड़ता है, उसमें भावनाओं की लहरें उत्पन्न करता है और लंबे समय तक उस कहानी को स्मृति में बनाए रखता है। करुण, वीर, श्रृंगार, हास्य या रौद्र – कोई भी रस हो, यदि वह स्वाभाविक रूप से प्रस्तुत किया जाए, तो कहानी न केवल सफल होती है बल्कि अमर भी हो जाती है। इसीलिए कहा गया है – “रस बिना साहित्य अधूरा होता है, और रसयुक्त कहानी ही पाठक के मन को बाँधती है।”
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